रचयिता का परिचय
नाम – बुन्नी लाल सिंह
पिता – स्वर्गीय अनूप लाल सिंह
लक्ष्मीपुर, सिरहा, नेपाल
New Address: B.ed क्यापस रोड असनपुर ६ गोलबजार, सिरहा (नेपाल)
पत्नी— स्वर्गीय राम सती सिंह
शिक्षा – कला स्नातक
सामाजिक गतिविंधि–
(क) दो माध्यमिक विद्यालयों के संस्थापक प्र. अध्यापक ।
(ख) १५ साल में गठित सल्लाहकार सभा में निर्वाचित सदस्य ।
(ग) ०२७ साल में निर्बाचित जिला पंचायत सदस्य ।
०२९ साल में तात्कालीन पंचायत व्यवस्था के विरोध स्वरुप जिला पंचायत की सदस्यता से निष्काशित । अठारह वर्ष अविछिन्न शैक्षिक सेवा के बाबजूद पंचायती सत्ता समर्थक पदाधिकारयों ने पद को अस्थायी रख अंततः ०३७ साल में छात्र आंदोलन के परोक्ष समर्थन के कारण शैक्षिक सेवा से पूर्णतः वंचित । मध्य प्रदेश की ‘वीणा’, नव नेपाल काठमाण्डू, लोकमत जनकपुर, आदि में कहानिया“ तथा हिमालय संदेश, पटना, ‘भिक्ष्ँु–मुजङ्खफरपुर, मिथिला मिहिर–पटना, लोकमत–जनकपुर से प्रकाशित पत्रिकाओं में कविताऐं प्रकाशित ।
(घ) “नेपाल में हिन्दी की विशिष्ट सेवा के लिये” जनकपुर बौद्घिक समाज जनकपुरधाम द्वारा ०५२ साल फाल्गुन २६ गते तद्नुसार ९मार्च १९९९ ई. में रजत मंडित प्रशस्तिपत्र प्रदान कर सम्मानित ।
(ङ) कहानी संकलन ‘परदेसी पिया की आस नहीं’ शीघ्र ही प्रकाश्य, ‘दी आने पैसे’ उपन्यास तथा एक नाटक । नेपालगंज से प्रकाशित नेपाली भाषा में पत्रिका किरण में प्रकाशिंत । “सीकी की डलिया” कव्य–पुस्तक प्रकाशित
(च) स्वजातिय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन तोलिहवा, कपिलवस्तु द्वारा २ गते चैत्र के दिन शाल तथा प्रमाण पत्र प्रदानकर सम्मानित ।
(छ) आश्विन २५ गते ०५८ साल पूर्व प्रधान मंत्री श्री शेर बहादुर देऊपा द्वारा श्री कृष्ण चंन्द्र मिश्र सम्मान प्रदान ।
(ञ) नेपाल कुशवाहा कल्याण समाज २०६१ साल भाद्र महिना २९ गते रोज ३ शुभम् पूर्व मन्त्री विजय गच्छेदार द्वारा शाल तथा अभिनन्दन–पत्र सम्मान प्रदान ।
(ट) नेपाल कुशवाहा कल्याण समाज द्वारा २०६३ साल आश्विन १८ गते के दिन शाल एवम् अभिनन्दन पत्र प्रदान कर सम्मानित ।
ठ) मध्य प्रदेश भारत से अंतराष्र्ट«र््ीय काव्य संकलन ‘शगुण’ में रचनाएं प्रकाशित ।
ड) नेपाल भारत के बीच भयंकर राजनैतिक मतभेद उत्पन्न हो जाने के कारण १–१०–६२ के दिन गंगा और तथाकथित कांग्रेसी नेता गिरिजा विनोद उपाध्याय के षडयंत्र के फलस्वरुप अब्दुल कारी खाँ (प्रतिभा सम्पन्न च्।त्।इ। अभियंता) जिनके नाम पर मुकदमा मधुवनी अदालत में दर्ज है एवम् हमारे लगायत अन्य नव व्यक्तियों को जयनगर (मधुवनी) महावीर चौक पर भारतीय पुलिस ने पकरकर मधुवनी जेल चलान कर २७–१–६३ के दिन ही मुक्त किया ।
समीक्षाः– पुस्तक “खोल तरी पतवार ।”
‘खोल तरी पतवार’ एक ऐसी काव्य पुस्तक है जो विरह मिलन के मधुर गीतों का सर्वोतम कोटि का संकलन है । इस पुस्तक में एक पर उत्कृष्ट गीत हैं । पुस्तक के आरम्भ में ‘समर्पण’ गीत हैं जिसका शीर्षक द्धंद में तुम क्यों पड≥ी हो ?” है । यह समर्यण गीत रचनाकार का कलात्मक हस्ताक्षर लिये है जो किसी भी सुह्दयी को आकर्षित कर सकने में समर्थ है, सक्षम है । गीत के पढ≥ने पर सहसा श्री जानकी वल्लभ शास्त्री जी रचित यस गीत पर ध्यान चला जाता है जो स्व. श्री नारायण चतुवेंदी जी द्वरा सम्पादित विरोषंक सरस्वती हीरक जयंती अंक १९००–१९५९–१९६१ में इलाहावाद से प्रकाशित है ।
नाविक, अभी सवेरा है,
तरी खोल झट, कट वह तट भी पहचाना क्या तेरा है ?
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सुनता हू“ – उस ओर सभी को होता रैन–बसेरा है ।
नाविक, अभी सवेरा है ।
समर्पण का गीत द्धंद में तुम क्यों पड≥ी हो ?’ प्रारम्भ में ही किसी भी सुह्दय, संवेदन शील पाष्क का ध्यान अपनी ओर केंद्रीत कर सकने में पूर्णतः समर्थ है, जो इस बात का दयोतक है कि रचनाकर हद की सीमा तक स्वयं अति भावुक, संवेदना से लबाभब है, ओत प्रोत है । प्रणय संगीत का स्वर बुलंदरूप में मुखरित है । ‘तेरा, मेरा साथ यहा“ का, टूटे फिर, यह नियम कहा“ का’ के वाक्यों में स्पष्टता से बतलाया गया है कि दो प्रणयी के बीच का आकर्षण जीवन पर्यत चलते रहने वाला है । इस में किसी भी प्रकार के व्यवधान की कल्पना नहीं की जा सकती है । पर जीवन हमारा क्षणभंगुर भी तो है । जीवन भरण के दो सत्यों को नकारना हमारे वश की बात नहीं । बिछुड≥न–वियोग कभी भी आ सकता है । इनहीं भावों को समेटे यह गीत प्रारम्भ में ही पाठकों को अपनी कैद में ले लेता है । जीवन–संगिनी के साथ छोड जाने के बाद रचित सभी गीतों में अन्यतम प्रणय की अभि व्यक्ति हुई है । निश्चितरुपेण यह काव्य संकलन ह्दयजनित वेदना, पीड≥ा, शोक का अनंत कालीन भंडार है ।
काव्य का सृजन अनुकूल अथवा प्रतिकूल दोनें स्थियों में होता है । दोनों ही परिस्थितियों में रचित कवितायाें में प्रिय,मनभावन होती हैं । वेदना से ओत प्रोत कविताओं को अ“ग्रेज कवि शेली ने ‘मधुरतम’ कहकर उ“च्यतम स्थान पर प्रतिष्ठित किया है ।
"Our swetert songs are those that tell of
saddest thought "
तभी तो ‘मेघ दूत’ जो कवि कालीदास रचित है विश्व भर में प्रसिद्ध है ।‘रेमाझी, खोल तरी पतवार ।’ शीर्षक गीत इस काव्य संकलन का प्रथम मोती है । इसके आद्योपांत पढ जाने पर हमारा ध्यान संसारिकता, जीवन की क्षणभंगुरता की ओर स्वतः चला जाता है । जहा“ जीवधरियों को ‘झेल चुका हू“ अगम विथायें’ का तीव्र अनुभव होता है । हम मनुष्यों की यह विवशता है कि आनन्द के सोर उपकरणें के हर ओर बिखरे रहने के बावजूद भी हम स्वर्गीय आन्द के अनुभव करने से सर्वथा वंचित रह जाते हैं ।
“तारा आें से सजी हवेली, मिलमिल उसके द्वार” या
‘देख गगन में बादल छाये, हरित धरा आ“चल लहराये’
‘चलला च“हु दिश अथवा चम, चम चमके’
“विकल प्रतीक्षा अथवा करती रजनी, कर मूल्न श्रृंगार’
आदि दृश्य दिन प्रति दिन की प्रकृति की देन है पर हम सभी इन सबसे उदासीन हो गोरखधंधा में लग जीवनयापन में तल्लीन रहते हैं । जीवन–संगिनी के घर–अंगन, आस–पास रहने के बाद भी सुखद साहचर्य सुलभ नहीं हो पाता । यह निखिल जगत ही प्रणय–क्रीड≥ स्थल है । कबूतर, कबूचरियों का चोंच –लड≥ाना। गुटरना, नाचना, पंछियों का जोड≥ो में फुदकना, चह चहाना, सीमाहीन आसमान में । पर सभी प्राणियों में हम मनुष्य ही ऐसे हैं जो विवशता के बंधन बांधकर सदा से ही छटपटाते आये हैं ।
“नयन अश्रु में खो जाता है, इस भरे जख्म में टीस बहुत बढ≥ जाती है”
अथवा
“दर्द बहुत मैं झेल चुका हू“ ।”
में प्राणी की विवशता की मर्मिक अभिव्यक्ति है । निम्नाङ्कित पंक्ति अ“ग्रेजी भाषा की द्रष्टव्य है ।
"It's checker board of nights and days.
Where destiny with men for pieces plays.
Hither and thither mover, meet? Slays.
And one by one into closet lays."
The Rubitat of Omar khayam
By
Titzrald.
भावों की कलात्मक अभिव्यक्ति में कवि ने पूर्ण पहुता का परिचय दिया है ।
‘सखी री, गा पावस के गीत ।’ शीर्षक गीत में चपला च“हु दिश चम, चम, चमके, चम्पा, बेला मह–मह म“हके ।’ में मनोरम चित्र बन पड≥ा है जो दर्शनीय है । अनुप्रास का प्रयोग हुआ है ।
“जो आया, जाना है उसको, यह नियम पुराना ।
साथी † दूर बहुत है जाना ।”
गीत में रचयिता ने बड≥े ही सरल, सहज ढं≥ग से जीवन की सत्यता को व्यक्त किया है ।
‘टीस’, टीश शब्द का छपजाना छपाई सम्बन्धी मूल की ओर संकेत करता है । जीवन के संधर्ष में जूझकर लड≥ने का अदम्य उत्साह भर सकने में ये गीत सक्षम नहीं दीखते । जीवन से पलायन काम्य नहीं ।
आज धड≥ल्ले से अतुकात कवितायों रची जाती हैं । ऐसे में लय–छंद से भरपूर गेय पद का सृजन अंत्यधिक महत्व रखता है । मुख–पृष्ठ आकर्षक, लुभावने चित्र से सजा है जो पुस्तक में निहीत भावों को व्यक्त करने में सक्षम है । नत्सम, तदभव तथा उर्दू के शब्दों का प्रयोग देखने लायक है ।
जीवन संगिनी के वियोग से उत्पन्न अंत स्तल की अगम वेदना तरल बन अनभोली मोती का रुप पकड≥ कागज के पन्नों पर बिखर गया है ।
पुस्तक का कागज उत्तम कोटि का है । अक्षर, भुद्रण बेहद आकर्षक है । कीमत सर्व साधारण की पहु“च की है ।
आ“सू की मसि में डूबोकर रचा गया यह करुण–काव्य बिहार के हिन्दी गीत साहित्य का अनमोल धरोहर है ।
श्री
धरा मा“गती बलिदान है ।
भूक बना है म“ूइ मा“ का
कर बंधा जंजीर से ।
खिन्न मा है। राह देखती
नयन भरा है नीर से ।
जग जानेगा जब तन पै सधवा का परिधान है
धरा भा“गती बलिदान है ।
धधक रही है धमन भट्टी
चल रहा तुफान है ।
चैन से बंसी बजाते
मा“ का न उनको ध्यान है ।
कुर की बेड≥ी बन जाय चूड≥ी, इसी में कल्याण है ।
धरा, मा“गती बालिदान है ।